द्वारका नगरी भारत के सबसे प्राचीन और पवित्र तीर्थों में से एक है। यह वही स्थान है जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी राजधानी बनाया था। हर वर्ष जब भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग होता है, तब पूरी दुनिया में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन द्वारका में इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि यहां का हर कोना कृष्णमय हो उठता है।
जन्माष्टमी का उत्सव द्वारका नगरी में केवल एक धार्मिक अवसर नहीं है, बल्कि यह भक्ति, आस्था, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक रंगों का अद्भुत संगम है। आइए जानते हैं कि द्वारका नगरी जन्माष्टमी पर कैसे सजती-संवरती है और भक्तों को क्या अनुभव कराती है।
1.जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व
जन्माष्टमी का पर्व भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने द्वापर युग में राक्षसों से पृथ्वी का भार घटाने के लिए श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया।
द्वारका नगरी को "कृष्ण की राजधानी" कहा जाता है। यही कारण है कि यहां जन्माष्टमी का पर्व अद्वितीय और दिव्य अनुभव कराता है। भक्त मानते हैं कि द्वारका में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का साक्षात्कार करना स्वयं भगवान की कृपा प्राप्त करने के समान है।
2. द्वारकाधीश मंदिर की भव्य सजावट
द्वारकाधीश मंदिर, जिसे जगत मंदिर भी कहा जाता है, द्वारका का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध मंदिर है। जन्माष्टमी पर इस मंदिर को फूलों, झालरों, रंग-बिरंगी रोशनियों और दीपमालाओं से सजाया जाता है।
मंदिर के शिखर पर लहराता ध्वज नए वस्त्रों और गहनों से सुसज्जित किया जाता है।
गर्भगृह में भगवान द्वारकाधीश का विशेष श्रृंगार होता है।
सुगंधित फूलों और तुलसी दल से भगवान की पूजा की जाती है।
मंदिर परिसर में जैसे ही भक्त प्रवेश करते हैं, उन्हें दिव्य आभा और भक्ति का अद्भुत अनुभव होता है।
3. मंगला आरती और जन्मोत्सव का क्षण
जन्माष्टमी की सबसे विशेष घड़ी आती है आधी रात को, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म माना जाता है। ठीक 12 बजे मंदिर में मंगला आरती होती है।
शंख, घंटा और मृदंग की ध्वनि से पूरा वातावरण गूंज उठता है।
भक्त "नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की" गाते हुए झूमते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का झूला सजाया जाता है, जिसमें बालकृष्ण की मूर्ति को झुलाया जाता है।
इस समय का वातावरण इतना दिव्य होता है कि हर भक्त भाव-विभोर हो उठता है।
4. झांकियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम
जन्माष्टमी पर द्वारका नगरी की गलियों में अलग ही रौनक होती है।
पूरे शहर में रासलीला और भजन संध्या आयोजित होती है।
बच्चे भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों की झांकियां प्रस्तुत करते हैं।
कलाकार श्रीकृष्ण के जीवन की घटनाओं जैसे गोवर्धन पूजा, माखन चोरी और कंस वध का मंचन करते हैं।
ये झांकियां न केवल भक्तों का मनोरंजन करती हैं, बल्कि उन्हें श्रीकृष्ण की लीलाओं का अनुभव भी कराती हैं।
5. भक्तों की आस्था और भीड़
जन्माष्टमी पर द्वारका नगरी में लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं।
मंदिर में दर्शन करने के लिए लंबी कतारें लगती हैं।
भक्तजन घंटों खड़े रहकर भी अपने आराध्य के दर्शन पाकर धन्य महसूस करते हैं।
न सिर्फ गुजरात, बल्कि उत्तर भारत, दक्षिण भारत और विदेशों से भी कृष्ण भक्त इस पर्व में शामिल होते हैं।
भक्तों का यह उत्साह और उमंग पूरे शहर को कृष्णमय बना देता है।
6. पर्यटन और आध्यात्मिक अनुभव
जन्माष्टमी का उत्सव केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत आकर्षक है।
इस समय द्वारका नगरी फूलों और रोशनी से सजी रहती है।
आसपास के प्रमुख स्थलों जैसे बेट द्वारका, रुक्मिणी मंदिर और गोमती घाट पर भी विशेष आयोजन होते हैं।
विदेशी पर्यटक भी यहां आकर भारतीय संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ते हैं।
पर्यटकों के लिए यह समय सबसे खास होता है क्योंकि वे भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रत्यक्ष अनुभव कर पाते हैं।
7. स्थानीय स्वाद और बाज़ारों की रौनक
जन्माष्टमी के अवसर पर द्वारका के बाज़ारों में भी अलग ही रौनक देखने को मिलती है।
जगह-जगह माखन-मिश्री, मिठाई और प्रसाद की दुकानें सजती हैं।
रंग-बिरंगी सजावटी वस्तुएं, कृष्ण झांकियों के खिलौने और धार्मिक सामग्री बिकती है।
भक्त इन वस्तुओं को खरीदकर अपने घरों को भी कृष्णमय बना लेते हैं।
8. जन्माष्टमी और सोशल मीडिया
आधुनिक समय में द्वारका की जन्माष्टमी केवल मंदिर और शहर तक सीमित नहीं रहती। अब यह सोशल मीडिया के माध्यम से पूरे विश्व में प्रसारित होती है।
भक्त लाइव दर्शन और ऑनलाइन आरती का आनंद लेते हैं।
यूट्यूब और फेसबुक पर मंदिर की झलकियां लाखों लोग देखते हैं।
इससे वे लोग भी जुड़े रहते हैं जो द्वारका आ नहीं पाते।
9. आध्यात्मिक लाभ
धार्मिक मान्यता है कि द्वारका में जन्माष्टमी का उत्सव देखने और भगवान द्वारकाधीश के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस दिन उपवास और भक्ति करने वाले भक्तों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से भक्त के जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
निष्कर्ष
जन्माष्टमी पर द्वारका नगरी का उत्सव अनोखा, भव्य और दिव्य होता है। यहां की सजावट, मंगला आरती, झांकियां और भक्तों का उत्साह मिलकर ऐसा वातावरण रचते हैं, जो जीवन भर भुलाया नहीं जा सकता।
यदि आपने कभी जन्माष्टमी पर द्वारका का अनुभव नहीं किया
है, तो एक बार अवश्य यहां आएं। आपको न केवल धार्मिक आनंद मिलेगा बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और उत्सव की भव्यता का अनुभव भी होगा।
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