"मरबत उत्सव 2025 – नागपुर की अनोखी परंपरा"
भारत विविधताओं की भूमि है, जहाँ हर राज्य, हर शहर, और हर समुदाय की अपनी-अपनी परंपराएँ और रीति-रिवाज हैं। इन्हीं में से एक है नागपुर (महाराष्ट्र) में मनाया जाने वाला मरबत उत्सव, जो अपनी अनोखी मान्यताओं और परंपराओं के कारण दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
हर साल भाद्रपद अमावस्या के दिन यह उत्सव मनाया जाता है, जहाँ हजारों लोग इसमें शामिल होकर बुरी शक्तियों के नाश और समाज से बुराइयों को दूर करने की कामना करते हैं।
मरबत उत्सव का इतिहास
मरबत उत्सव की शुरुआत लगभग 125 साल पहले नागपुर के तारी अंजुमन समाज द्वारा की गई थी।
उस समय समाज में फैली बुराइयों, अशांति, बीमारियों और अत्याचारों से परेशान होकर लोगों ने एक अनोखा उपाय खोजा।
उन्होंने विशालकाय पुतलों, जिन्हें "मरबत" कहा जाता है, के माध्यम से समाज की बुराइयों और नकारात्मक शक्तियों को जलाकर खत्म करने की परंपरा शुरू की।
समय के साथ यह उत्सव नागपुर की पहचान बन गया।
मरबत परंपरा और श्रीकृष्ण कथा
मरबत की परंपरा का संबंध भगवान श्रीकृष्ण की जन्मकथा से जोड़ा जाता है।
कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ, तब उनके मामा कंस ने उन्हें मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को भेजा।
पूतना सुंदर स्त्री का रूप धरकर गोकुल पहुँची और श्रीकृष्ण को दूध पिलाने के बहाने विष पिलाकर मारने का प्रयास किया।
लेकिन कन्हैया ने दूध के साथ उसकी प्राणशक्ति भी खींच ली और पूतना का वध कर दिया।
इसी घटना की याद में बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक के रूप में मरबत उत्सव मनाया जाता है।
मरबत के विशाल पुतलों को बनाकर उनका दहन किया जाता है,
जो यह संदेश देता है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय पाती है।
मरबत के प्रकार
मरबत दो मुख्य प्रकार की होती हैं:
1. काली मरबत – बुरी आत्माओं, महामारी, बीमारियों और सामाजिक समस्याओं को दूर करने के लिए।
2. पीली मरबत – शांति, समृद्धि और खुशहाली की कामना के लिए।
इन दोनों मरबतों को बांस, कपड़े और रंगों से सजाकर विशालकाय पुतलों के रूप में तैयार किया जाता है, जिन्हें बाद में पूरे शहर में शोभायात्रा के रूप में घुमाया जाता है।
मरबत उत्सव का महत्व
मरबत केवल एक धार्मिक या पारंपरिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जनता की भावनाओं का प्रतीक है।
इस दिन लोग अपनी शिकायतें, गुस्सा और असंतोष भी खुलकर व्यक्त करते हैं।
लोग उन व्यक्तियों, संगठनों, नेताओं, या घटनाओं की निंदा करते हैं, जिनसे उन्हें समाज में समस्या या अन्याय का सामना करना पड़ता है।
मरबत उत्सव कैसे मनाया जाता है
1. तैयारी की शुरुआत – उत्सव से कई दिन पहले मरबत के पुतले तैयार करना शुरू हो जाता है।
2. विशाल शोभायात्रा – अमावस्या के दिन सुबह से ही लोग पुतलों को सजाकर जुलूस में ले जाते हैं।
3. नारेबाजी – जुलूस के दौरान लोग जोर-जोर से नारे लगाते हैं, जिसमें समाज की समस्याओं और बुराइयों को उजागर किया जाता है।
4. मरबत दहन – अंत में इन पुतलों को खुले मैदान में ले जाकर आग के हवाले कर दिया जाता है।
5. शांति प्रार्थना – दहन के बाद समाज की शांति और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।
मरबत से जुड़ी रोचक बातें
यह उत्सव केवल नागपुर में ही नहीं, बल्कि विदर्भ के कई इलाकों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।
मरबत के पुतलों की ऊँचाई कई बार 25 से 30 फीट तक होती है।
इस दिन नागपुर के कई हिस्सों में बाजार, स्कूल और दफ्तर बंद रहते हैं।
लोग इसमें केवल धार्मिक कारणों से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक कारणों से भी भाग लेते हैं।
पर्यटन के लिहाज से महत्व
मरबत उत्सव के समय नागपुर में भारी संख्या में सैलानी आते हैं।
देश-विदेश से लोग इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए यहाँ पहुँचते हैं।
इससे न केवल स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है, बल्कि नागपुर की संस्कृति और विरासत भी विश्वभर में प्रसिद्ध होती है।
निष्कर्ष
मरबत उत्सव सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समाज की आवाज़ है।
यह परंपरा हमें यह संदेश देती है कि बुराइयाँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अगर समाज एकजुट हो जाए तो उन्हें मिटाना संभव है।
नागपुर की यह अनोखी परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कृति, एकता और जागरूकता की सीख देती है।
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